वांछित मन्त्र चुनें

गि॒रा य ए॒ता यु॒नज॒द्धरी॑ त॒ इन्द्र॑ प्रि॒या सु॒रथा॑ शूर धा॒यू। प्र यो म॒न्युं रिरि॑क्षतो मि॒नात्या सु॒क्रतु॑मर्य॒मणं॑ ववृत्याम् ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

girā ya etā yunajad dharī ta indra priyā surathā śūra dhāyū | pra yo manyuṁ ririkṣato mināty ā sukratum aryamaṇaṁ vavṛtyām ||

पद पाठ

गि॒रा। यः। ए॒ता। यु॒नज॑त्। हरी॒ इति॑। ते॒। इन्द्र॑। प्रि॒या। सु॒ऽरथा॑। शू॒र॒। धा॒यू इति॑। प्र। यः। म॒न्युम्। रिरि॑क्षतः। मि॒नाति॑। आ। सु॒ऽक्रतु॑म्। अ॒र्य॒मण॑म्। व॒वृ॒त्या॒म् ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:36» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:1» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:4


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा किस का सत्कार करके और उसकी रक्षा करे, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) शत्रुओं की हिंसा करनेवाले (इन्द्र) राजा ! (यः) जो (ते) आपके (एता) यह दोनों (सुरथा) सुन्दर रथवाले (धायू) धारणकर्त्ता (प्रिया) मनोहर (हरी) घोड़ों को (गिरा) वाणी से (युनजत्) युक्त करता है वा (यः) जो (रिरिक्षतः) हिंसा करने की इच्छा किये हुए दुष्ट शत्रु से (मन्युम्) क्रोध को (प्र, मिनाति) नष्ट करता है उस (सुक्रतुम्) प्रशंसित बुद्धियुक्त (अर्यमणम्) न्यायकारी सज्जन को मैं (आ, ववृत्याम्) अच्छे प्रकार वर्तूँ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो रथ आदि के चलाने में कुशल, राजप्रिय, विद्वान् हों, उनको आप न्यायकारी करो ॥४॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्स राजा कं सत्कृत्य रक्षेदित्याह ॥

अन्वय:

हे शूरेन्द्र ! यस्त एता सुरथा धायू प्रिया हरी गिरा युनजत् यो रिरिक्षतो मन्युं प्रमिणाति तं सुक्रतुमर्यमणमहमा ववृत्याम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (गिरा) वाण्या (यः) (एता) एतौ (युनजत्) युनक्ति (हरी) अश्वौ (ते) तव (इन्द्र) राजन् (प्रिया) कमनीयौ (सुरथा) सुष्ठु रथो ययोस्तौ (शूर) शत्रूणां हिंसक (धायू) धारकौ (प्र) (यः) (मन्युम्) क्रोधम् (रिरिक्षतः) हन्तुमिच्छतो दुष्टाच्छत्रोः (मिनाति) हिनस्ति (आ) (सुक्रतुम्) प्रशस्तप्रज्ञम् (अर्यमणम्) न्यायकारिणम् (ववृत्याम्) वर्तयेयम् ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये यानचालने कुशला राजप्रियाः विद्वांसः स्युस्ताँस्त्वं न्यायकारिणः कुर्याः ॥४॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! जे रथ इत्यादी चालविण्यात कुशल, राजप्रिय, विद्वान असतील तर त्यांच्याशी तू न्यायाने वाग. ॥ ४ ॥